Piyush Goel

Abstract Inspirational

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Piyush Goel

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भारत की सच्ची तस्वीर

भारत की सच्ची तस्वीर

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आज भारत की सच्ची तस्वीर दिखाता हूँ

जिस सच्चाई को सब छुपाते, आज उसे बताता हूं

जिस पवन धरती का इतिहास बड़ा सुहाना है

तुम्हें बताऊँ आज मैं, उस धरती पर कैसा नया ज़माना है


किसी समय मशहूर थी जहाँ हरिश्चंद्र की ईमानदार

उस धरती पर आज कब्जा जमा बैठे भ्रष्टाचारी

भ्रष्टाचार का साँप पूरे देश को निगल चुका है

संस्कार सब नष्ट हुए, विष ऐसा उगल चुका है


जो धरती नैतिक मूल्यों की पोषक थी, आज मूल्यों से वीरान खड़ी

जिस भूमि पर मर्यादा पुरुषोत्तम जन्मे थे, वो मर्यादा का श्मशान बनी

जिन्हें जेलों में होने था, देश के ठेकेदार वो बन बैठे है

लाशों का पर्वत चढ़कर, कुर्सी पर जा ऐंठे है


देखते ही अन्याय को हर कोई चुप हो जाता है

भारत माता को भूल जाता, खुदगर्ज़ी मद इस क़दर खो जाता है

अपनी राजगद्दी बचाने खातिर, नेता कर देते देश की प्रतिभा को कुर्बान

सब सच्चाई को जानते हुए, मैं कैसे कहूंगा कि सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान


महाराणा प्रताप हुए, विक्रम हुए और हुए अशोक महान

ये वो पवन धरा है, जहाँ पर जन्मे थे रघुवर और घनश्याम

पर अब वैभव बचा नहीं, काले धन का हो गया राज़

सोने की चिड़िया का हो गया है आज विनाश


शहीदों की आंखों से भी बहता होगा खारा पानी

देख दशा भारत की सोचते होंगे, क्या इस खातिर दी थी कुर्बानी

स्वर्ग में बैठे पछताते होंगे भगत सिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद

किस भारत का सपना देखा था और क्या हो गया यह आज


कबीर के उपदेशों की जो धरती है

गुरुनानक के संदेशों की जो धरती है

आज उसी धरती पर ढोंगी संतों की हुकूमत चलती है

भारत माँ की आंखों से बूंदें झर-झर झरती है


जिस भूमि पर मुरलीधर ने गीता सुनाई थी

जीवन जीने की राह पूरी दुनिया को बतलाई थी

आज उस भूमि पर किसी को धर्म- अधर्म का ज्ञान नहीं

जिस भूमि ने कला को जन्म दिया, आज वहां कला का मान नहीं


जहाँ पर श्रवण कुमार सा बेटा था, आज वहाँ वृद्धाश्रम भरे हुए

बुढ़ापे में छोड़ अकेला मात पिता को बेटे विदेशों में जा बसे हुए

राम - भरत जैसा भ्रातृ प्रेम नहीं है, भाई - भाई से लड़ता है

प्रोपेर्टी का लालच ऐसा, भाई - भाई को छलता है


पूरा आर्यव्रत शकुनि के पासो का मैदान हुआ

पैरों की जूती नारी का स्वाभिमान हुआ

पर कोई माधव आकर चीर बढ़ाता नहीं

देख वस्त्र हरण द्रौपदी का, कोई भीम प्रतिज्ञा सुनाता नहीं

अमीर की दौलत खा जाती गरीब के घर की इज़्ज़त को

सलामी मिलती नहीं इंसान को, मिलती पैसों की हुकूमत को

सच बिकता, झूठ बिकता और बिक जाता है स्वाभिमान

पैसों के आगे झुक जाता है हर एक इंसान


जहाँ न्याय बिक जाता हूं, उसे न्यायालय कैसे कहूँ

जहाँ विद्या का व्यापार होता, उसे विद्यालय कैसे कहूँ

ऐसा नहीं है कि इन बातों को कोई जानता नहीं है

पता सबको है यह बातें पर कोई मानता नहीं है


हर भारत वासी को आईना कवि ने दिखलाया है

शब्द नहीं है केवल ये, नीर है जो भारत माँ ने बहाया है

जागो भारत माता के बेटे, तुम्हें माँ ने बुलाया है

भारत की सच्ची तस्वीर को कवि ने बतलाया है


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