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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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"जब से हुआ,समझदार"

"जब से हुआ,समझदार"

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जीवन में जब से हुआ,में समझदार

तब से अपनों से मिलने लगा,दुत्कार

रोशनी पर हुआ,अंधेरे का अधिकार

हो रहा आज दीप,तम आगे लाचार


जब से हुआ समझदार और खुद्दार

शूल बन चुभा,जो कहते थे,गुलजार

बिगड़ गया उन मित्रों का भी व्यवहार

सफलता सीढियां क्या,चढ़ी मैंने चार


जब से ठोकर खाकर,बना दुनियादार

लोगो को लगा,मैंने बदला है,कारोबार

जब से चलाने लगा,बुराई पर तलवार

उनको पीड़ा हुई,जो चेहरे थे दगाबाज


जीवन मे होने लगा,अकेलापन शिकार

समझदारी को जो बना लिया,हथियार

अकेला रहने लगा,अकेला ही रोने लगा,

सत्य कीड़े ने जो काट लिया,हजार बार


क्या अपने,क्या गैर,दुश्मन,बने हजार

जब से बना दुनिया मे,में एक ईमानदार

बेईमानो को लगा,में हूं पागल शानदार

सच्चाई कारण लोगों में मचा,हाहाकार


जब से क्या हुआ,मुझे अच्छाई से प्यार

अपनों के लिये हुआ,में आदमी बीमार

दूर भाग गये मेरे वो सब ही रिश्तेदार

जब से चुन लिया,सत्य पथ मैंने यार


गर जीना है,साखी तुझको इस संसार

छोड़ मोह-माया,बालाजी से कर प्यार

तेरा हर ख्वाब हो जायेगा,यहां साकार

कठोर श्रम,कटु सत्य से आंखे कर चार


यह जीवन है,कुरुक्षेत्र से बड़ा संग्राम

जो करता नही,झूठे जग पर ऐतबार

नश्वर जग को समझता,बुलबुला हार

मृत्युलोक से मुक्त होता है,वो कलाकार


बालाजी भक्ति पर कर,तू जान-निसार

यह जग-दरिया अनायास तू होगा,पार

जीवन मे सदा झूठ,तम से कर टकरार

एकदिन बनेगा,तू भी इंसान निर्विकार



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