STORYMIRROR

mamta pathak

Abstract

5.0  

mamta pathak

Abstract

घर मेरा नहीं

घर मेरा नहीं

1 min
666


घर की चाबियां देकर

वह बोला घर तुम्हारा है।

मालकिन हो घर की और,

हाथ पकड़ अंदर ले गया।


यह देखो मेरे सब दोस्त आए हैं,

तुम्हें बधाई देने।

मेश सुरेश व मिस्टर पांडे

और वह रही शालिनी।


अब इधर देखो,

यह रहा हमारा कमरा।

पलंग का यह कोना मेरा,

और वह रहा तुम्हारा।


सिरहाने पर लाइट,

ताकि मैं किताबें पढ़ सकूं।

यह मेरी किताबों की अलमारी,

और वे कपड़ों की

सामने छप्पन इंच का टीवी।


एक के बाद दूसरा,

दूसरे के बाद तीसरा कमरा।

अब देखो रसोई

वहां तुम्हारा राज चलेगा,

है ना, सब कुछ शानदार।


उसने घर के हर कोने को देखा

मुस्कुराई और बोली

हां, सब कुछ बहुत शानदार

लेकिन,


पलंग के एक किनारे के सिवा

इस घर में मेरा कुछ नहीं

चाबियां तो मेरे हाथ में हैं,

लेकिन यह घर मेरा नहीं

यह घर मेरा नहीं !


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract