बूढ़ा पिंजरा
बूढ़ा पिंजरा
शरीर का ये बूढ़ा पिंजरा, जीवन की सच्चाई है,
सूखी चमड़ी, झुकी कमर ये अनुभव की गहराई है।
बचपन बीता, गई जवानी, सब बातें अब हुई पुरानी,
सूनापन कितना गहरा, आस रूखी हुई मुरझाई है।
पर नन्हे हाथों की छुअन मन में आस जगाती है,
इन बूढ़ी आँखों को अब, बच्चों की खुशियाँ ही भाती है।
मत मन को इनके दुख देना कोई,हरदम गले लगाना है,
इनके अनुभव को समझ हमें, अपना अनुभव बढ़ाना है।
यह बूढ़ी जर्जर काया, हमसे कुछ नहीं चाहती है,
प्रेम मिले, सम्मान मिले बस यही आस ले मुस्काती है।