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mamta pathak

Abstract

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mamta pathak

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परिवार

परिवार

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बचपन था मेरा बड़ा ही प्यारा ,

एक बड़ा था परिवार हमारा ।

ताई-ताऊ, चाचा-चाची,

संग रहते थे भैया भाभी।

पर अब सब कहीं खोए है ,

अनजाने ही कहीं सोए हैं।

याद जो आये बचपन तो

नैना ये बड़े रोए है।

बचपन था मेरा बड़ा ही प्यारा ,

एक बड़ा था परिवार हमारा ।।


पंगत बैठ निवाले खाना, 

अपनेपन का था तानाबाना।

दादा की लाठी, दादी का चश्मा,

चाची का लाडो -लाडो कहना।

ताऊ के किस्से रातों में,

चाचा की मस्ती बातों में।

अब गलती को कौन छुपाए,

वो दादी - ताई कहाँ से लाए।

याद जो आये बचपन तो,

नैना ये मेरे भर -भर जाए।

बचपन था मेरा बड़ा ही प्यारा ,

एक बड़ा था परिवार हमारा ।


गर्मी की रातें ,बच्चों की बातें,

तारों की बारात निकलती थी।

कौन है अपना, कौन पराया,

 ये बात कभी न उठती थी।

मौसी- मामा, बुआ के बच्चे,

सब छुट्टी में आते थे,

मिलकर हम सब, पूरे घर को,

खूब नाच नचाते थे।

पर अब सब है, भूल गए,

पास जो थे, सब दूर गए।

रिश्ते छूटे, अपने रूठे,

परिवारों के खाके टूटे।

बचपन था मेरा बड़ा ही प्यारा,

एक बड़ा था परिवार हमारा ।


इस दौर में हम मुस्कातें हैं ,

उस दौर में हम सब हँसते थे।

बात- बात या बिना बात के,

खूब ठहाके लगते थे।

अब छोटा-सुखी हुआ परिवार,

तब एक घर में थे कई परिवार 

देवर -भाभी ,जेठ -जेठानी ,

जाने कितने रिश्ते बसते थे।

अब तो ये सब शब्द भी खोए ,

परिवारों के अस्तित्व हैं रोएँ।

परिवार बड़े अब छोटे है,

बच्चे अब तन्हा ही रोते हैं।



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