तुम्हारा एहसास
तुम्हारा एहसास
एक दिन तुमने कहा था कि
तुम मुझे उड़ना सिखाओगे
तब से अब तक
तुम्हारे होने के एहसास से ही
मेरा मन उड़ता रहता है
जाता रहता है उन सभी जगहों पर
जहाँ मैं जाना चाहती हूँ
एक पंछी की तरह फड़फड़ाते है मेरे पंख
मैं उड़ जाती हूँ दूर गगन में कहीं
छुपती हूँ सफेद बादलों के पीछे
ताकि तुम बुलाओ मुझे
और मैं सुन सकूँ तुम्हारी आवाज
भर सकूँ अपना रोम-रोम तुम्हारे प्यार से
तुम्हारे एहसास भर से मन लेता रहता है
लहर दर लहर करवटें
रहता है उछलता, कूदता, उमड़ता
करता रहता बचकानी शरारतें
ठीक वैसे ही, जैसे तुम हो
नटखट, चुलबुले, प्यार उड़ेलते।
मगर जिस दिन सताता है
तुम्हारे न होने का एहसास,
या न हो तुम्हारी आवाज मेरे पास
एक गहरा सन्नाटा पसर जाता है
मेरे घर, आंगन , आस-पास
और मेरे रोम-रोम में
छा जाती है उदासी
मन किसी उजड़े जंगल सा
करता रहता है सांय -सायं
शरीर थका सा बैठा रहता है
घर के किसी कोने में
आत्मा हो जाती है
अधमरी, निस्पंद सी
मन सिसकता है और कहता है
मैं हो गयी हूँ,
अनाथ, असहाय, विकल, विचल सी!
तुम सुन रहे हो न
तुम्हारे होने, न होने का एहसास ही
मेरे होने, न होने का प्रमाण है!