रणबांकुरें
रणबांकुरें


सूर्य भी करता नमन है ,देश के रणबांकुरों को,
सर झुकाता है हिमालय, देश के रणबांकुरों को।
शीश ऊँचा ये किये हैं, काम ये करते बड़े हैं ,
शत्रु का ये चीर सीना, हो अडिग ,निशदिन खड़े हैं।
सरों पर ये टोपियाँ, बंदूक और ये गोलियाँ,
हमको नही है डर किसी का ,ये प्रेम की है सीपियाँ।
हम नशे में चूर रहते , अपने वतन को हूर कहते,
हम निकल पड़ते घरों से , कोई आहें भरे या सिसकियाँ।
है बदन में रक्त जबतक , शीश हम न झुकायेंगे,
भारत माँ के आँचल को , अपना श्रंगार बनाएंगे।
है सोने सी धरतीअपनी, न किसी को लेने देंगे ,
आँख उठी जो किसी की, हम वही पर चीर देंगे।
हो हरी धरती ये अपनी, नीला गगन विशाल हो ,
चाँद-तारों सा चमकता, अपना तिरंगा मिशाल हो।
जब भी निकले है घरों से , अपने यही अरमान हो,
देश हमारा हमको प्यारा ,भारत माँ का बखान हो।
सुनो प्यारे देश वासी , अपनी यही फरियाद है,
हम तो लड़ते है सीमा पर , तुम निडर आज़ाद हो ।
रहो प्रेम से , लगकर गले, न कोई वहाँ गद्दार हो,
माँ के हम पहरेदारों पर ,इतना तो बस उपकार हो।
इनको जिसने जनम दिया, उस कोख को ,शत-शत नमन।
मंत्र फूंका देश का, उस पिता को है आज वंदन।
चल पड़ा जो लाल देखो, माँ की दुआ, दिल में लिए,
हो सुरक्षित देश अपना , चलते रहे ये प्रण किए ।
करो नमन उस रक्त को, जो देश के हित में जिए,
फौलाद का सीना लिए , दर्द भी हँस कर लिए,
कह रहे ये आज हमसे, मन में एक फरियाद लिए,
तुम जो बैठे हो घरों में , काम बस इतना करो,
मेरी माँ के आंचल में तुम , तुम प्रेम की गंगा भरो।
तुम प्रेम की गंगा भरो........
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