रंडी
रंडी


कल ही देखा सड़क के दूसरे छोर पर
एक पुरुष पीट रहा था अपनी स्त्री को
सिसकते हुए दो बच्चे देख रहे थे ये दृश्य
और शायद कोस रहे थे खुद की कमज़ोरी पर
पुरुष अपनी पूरी ऊर्जा से पीट रहा था
साथ ही दे रह था स्त्रियों से जुड़ी तमाम गालियां
रंडी कहीं की छिनार, तेरी औकात बताता हूँ
स्त्री बस बोल रही थी तुम गलत समझ रहे
जो तुम सोच रहे ऐसा कुछ नहीं
माँ हूँ तुम्हारे दो बच्चो की
ज़िन्दगी के बीस बरस दिए है तुम्हें
खटती हूँ सुबह से शाम तक
ताकि खुश रख सकूँ तुम्हे और बच्चों को
तुम सबको प्यार करती हूँ
मगर पुरुष था कि पीटे जा रहा था
चूर था पुरुष होने अहंकार में
कहे जा रहा था रंडी कहीं की छिनार
तभी औरत जोर से चिल्लाई
रंडिया प्यार नहीं करती
भावनाओं और रिश्तों में बंधकर
खुद को खत्म नहीं करती
कोई उनके साथ जबरदस्ती कर सकें
इतनी हिम्मत व ताकत नहीं होती किसी पुरुष में
उनके सामने सारी मर्दानगी मरे चूहे सी हो जाती है
उन्हें बेतहाशा वर्षों तक कोई पीट नही सकता
वे मजबूर हो सकती है लेकिन कमज़ोर नहीं
काश तुम्हारी बीवी बनाने के बजाय
मैं रंडी ही बनी होती तो आज
ज्यादा सशक्त और मजबूत होती!