एक बार
एक बार
उपेक्षित भावना से आहत
बेचैन, निराश ,परेशान
एक बार
खुद से खुद को ढूंढने निकला
यादों में बसी जीवंत तस्वीरों से
वर्तमान का मिलान नहीं कर पाया
किसी में नाक लंबी
किसी में जुबान छोटी
किसी में सर के बाल का अंतर
किसी में जूते का माप अलग
ढूंढते ढूंढते किसी नुक्कड़ पर
मिल गए तस्वीरों में अंकित कुछ चेहरे
कुछ ने मुझे नहीं पहचाना
कुछ को मैंने नहीं पहचाना
मेरा दुःख उनको नहीं चुभा
मुझे यह बात चुभ गयी
तकदीर से तस्वीर बदलती है
तस्वीर से तकदीर नहीं बदलती है
मैं सच्च बोलता रहा
लोग झूठ समझते रहे
कोई ना मिला जिसको मैं मिला
ढूंढता रहा ,कोई तो मिले जिसे मिलूँ
शाम जब घर लौटा
अकेला ही लौटा
अजनबी अज्ञात अशांत ।।