STORYMIRROR

Sunil Kumar

Abstract

4  

Sunil Kumar

Abstract

निभाना पड़ता है

निभाना पड़ता है

1 min
242

रिश्तों को निभाने की खातिर 

बहुत कुछ निभाना पड़ता है

लाख जख्म हो सीने में 

फिर भी मुस्कुराना पड़ता है।


जानकर भी सबकुछ कभी

अंजाना बन जाना पड़ता है 

रिश्तों को निभाने की खातिर 

बहुत कुछ निभाना पड़ता है।


अपनों की खुशियों की खातिर 

कभी गूंगा-कभी बहरा 

बन जाना पड़ता है

रिश्तों को निभाने की खातिर 

बहुत कुछ निभाना पड़ता है।


कहीं भीग न जाए मेरा अपना कोई

मेरे आंसुओं की बारिश में 

इसलिए आंसुओं को 

आंखों में ही सुखाना पड़ता है

रिश्तों को निभाने की खातिर 

बहुत कुछ निभाना पड़ता है।


कहीं बिखर न जाए मेरा अपना कोई

हार कर मुझसे 

इसलिए कभी जीत कर भी 

हार जाना पड़ता है

रिश्तों को निभाने की खातिर 

बहुत कुछ निभाना पड़ता है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract