महिमा अपार
महिमा अपार
भगवान विष्णु पर भावपूर्ण कविता
हरि, तुम्हारी महिमा, हरि अनंत
जल में, थल में, नभ में, तुम्हारा वंदन।
शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी,
वेदों के साक्षात, सत्य तुम्हारी गाथा।
शांत मुद्रा, नीली आभा,
तुम्हारी करुणा, सृष्टि का सहारा।
महाकाल के पार, अचल, अनंत,
तुम्हारी ममता में, मिला मोक्ष का आनंद।
तुम्हारे चरणों में, हरि, है समर्पण,
तुम हो धर्म के रक्षक, अधर्म का संहार।
विराट रूप में तुम, सृष्टि के नियंता,
तुम ही हो जीवन, तुम ही हो संसार।
कर्मयोगी, धर्म के पथप्रदर्शक,
राम, कृष्ण के रूप में, तुम्हारा अवतार।
हर युग में तुम्हारी लीला,
धर्म की पुनः स्थापना, तुम्हारी परिभाषा।
पल-पल में है तुम्हारा सान्निध्य,
हर कण-कण में तुम्हारा अस्तित्व।
प्रेम, भक्ति, और सेवा का स्वरूप,
हर ह्रदय में बसे, तुम्हारा शाश्वत स्वरूप।
विष्णु, तुम्हारी महिमा अपरम्पार,
अखंड, अजर, अमर, तुम्हारा विस्तार।
हमारे जीवन की धारा,
तुम्हारे प्रेम में बहती, हरि, तुम्हारी कृपा अपरंपार।