कोरोना के कर्मवीर
कोरोना के कर्मवीर
क्षत विक्षत है धरती
हर दिशा में हाहाकार है,
ना जाने प्रकृति का कैसा ये प्रतिकार है।
घोर निराशा, भय का अतिरेक,
व्याकुल हृदय, आशंकित मन
कहीं अस्तंगत क्षण क्षण स्पंदन,
कहीं करुण क्रंदन
चहुं ओर एक जड़ता सी व्याप्त है।
जो इंसान भागा फिरता था निन्यानबे के फेर में,
आज उसके लिए थोड़ा ही पर्याप्त है।
ना जाने कब कैसे
चीन से निकला वह अदृश्य विषाणु,
विध्वंस का नृशंस खेल खेल गया
असंख्य प्राणों की ले कर आहुति,
कितनी मांओं के कलेजे चीर गया।
बदले जीवन के समस्त समीकरण,
कहीं जागा अन्तःकरण
तो कहीं हुआ आत्मविश्लेषण।
कोई इस भीषण आपदा में
कर्मवीर बन मानवता की मिसाल बना,
तो कोई अपना सर्वस्व भेंट चढ़ा कर
दीन हीनों की ढाल बना।
ना छोड़े हम सब भी आशा और
सयंम का दामन
वैश्विक संकट की इस घड़ी में ।
निरंतर साहस एवं आत्मबल का परिचय दें।
कर्मयुद्ध की इस अंतिम कड़ी में।
जब हम मे से हर एक
दृढ़ता से कदम बढ़ाएगा,
इस विकट समस्या का समाधान भी
निश्चित आयेगा
नवचेतना के दीप से प्रज्वलित हो
सम्पूर्ण जग जगमगाएगा।
तब निसंदेह होगा कोरोनासुर का दमन,
और जग फिर से मुस्कुराएगा
देश फिर से खिलखिलाएगा
