जिंदगी की यात्रा
जिंदगी की यात्रा
ये एक ऐसी यात्रा,
जिससे हर कोई रबरू होता,
कभी उतार कभी चढ़ाव,
लेकिन जिंदगी अटल।
जब मनुष्य पैदा होता,
उसी दिन से,
ये किस्सा शुरू होता,
कई खट्टे मीठे अनुभवों से गुजरता।
फिर मां-बाप उंगली पकड़कर चलना सिखाते,
अच्छे बुरे का अंतर बताते,
पहले गुरु कहलाते,
उसकी नींव सदृढ़ करते।
फिर बच्चा विद्यालय में जाता,
सहपाठियों से मिलता,
मित्र बनाता,
और अपनी शिक्षा की यात्रा शुरू करता।
धीरे धीरे बड़ा होता,
कुछ अपने सहपाठियों से सिखता,
कुछ अध्यापकों से सिखता,
शिक्षा की अगली से अगली सीढ़ी चढ़ता।
एक दिन वो महाविद्यालय में पहुंचता,
वहां वो पूर्ण स्वतंत्रता पाता,
बिना रोक-टोक के पढ़ता,
और हर विधा में निपुणता ग्रहण करता।
वहां उसका जिंदगी से सही परिचय होता,
छात्र और छात्राओं में कोई अंतर नहीं देखता,
कुछ छात्राओं से भी दोस्ती करता,
और एक अलग अनुभव पाता।
फिर वो संपूर्ण मानव बनके निकलता,
जिंदगी की जद्दोजहद में शामिल होता,
कोई न कोई व्यवसाय करता,
धन दौलत कमाता।
अब वो अपनी दुनिया बसाने का सोचता,
फिर एक दिन किसी के प्यार में पड़ता,
शादी रचाता,
समाज में कर्तव्य परायण पुरूष कहलाता।
फिर उसका अपना परिवार बन जाता,
पुराना चक्कर शुरू हो जाता,
अपने बच्चों का भविष्य बनाता,
उनको भी अपनी जिंदगी शुरू करने का अवसर दिलाता।
ये समाज का चक्कर चलता रहता,
अंत में वो बूढा हो जाता,
अपने नाते नातियों के साथ समय बिताता,
उनके साथ अपने अनुभव बांटता।
एक दिन बीमार पड़ जाता,
चिकीत्सक लाख जोर लगाता,
लेकिन शरीर जबाव दे जाता,
और मिट्टी में मिल जाता।
इस तरह जिंदगी की यात्रा चलती,
तभी समझदार लोग कहते,
खूब अच्छे काम करो,
जिससे जाने के बाद भी याद रहो।
