सैनिक
सैनिक


आसूं की एक बूंद भी ना निकली थी,
ना मुंह में आह की बोली थी,
खा रहा था अपनी छाती पर गोली,
मुंह में इंकलाब जिंदाबाद की बोली थी।
खून से उसकी लथपथ काया थी,
जुबानों पर जय हिन्द का नारा था,
तिरंगे पर सिर्फ वो खून के धब्बे नहीं,
वो शेरों की जीत निशानी थी।
छप्पन इंच का सीना था,
खून में खौलती जवानी थी,
दम रखते थे छाती पर गोली खाने की,
ये भारत के जाबांज शेरों की पहचाने थी।
उन सबका शिव शम्भू सा भुजा था,
कन्धों पर भारत की रक्षा की जिम्मेदारी थी,
मर गये लड़ते लड़ते सीमा पर वो,
मुंह से निकली भारत माता की जय आखिरी वाणी थी।