गुरु गोविंद
गुरु गोविंद
हम नादान बालक ही तो थे
"मा " से मां कहना सिखाया
जब जब मंज़िल धुँधली थी
हाथ पकड़ कर राह दिखाया ।।
कभी द्रोणाचार्य विश्वामित्र बन
प्रेरित कर अर्जुन राम बनाया।
अपने शिष्य की उन्नति के लिए
कलम कभी तलवार उठाया ।।
वक्त बदला है भूमिकाएँ बदली
आपने ना कभी अधिकार जताया।
गुढ़ रहस्य ज्ञान आनंद के सागर
सारे संसार का ही आप समाया ।।
घर छोड़ जब हम कूदे समर में
अच्छे बुरे का भी परख सिखाया।
आप ही थे गुरुवर जिन्होंने कभी
परम भक्तों को भगवान मिलाया।
हर एक प्रश्न से जब लड़ रहा था
आपने नेपथ्य से साहस बढ़ाया।
कैसे लड़ूँ दुविधा के तम ,भय से
आपने ही है टोका, है समझाया।।
कितने रूपों में आकर गुरुवर
क ख -चिकित्सा विज्ञान सिखाया
आप ही थे जिन्होंने कभी हम
मूढ़ अधम को इंसान बनाया।।