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Dr.Pratik Prabhakar

Abstract Tragedy

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Dr.Pratik Prabhakar

Abstract Tragedy

निद्रा के शरण

निद्रा के शरण

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हारा मैं हारा, पूछो मैं किसके 

शरण

किससे हूँ पराजित, किसने किया 

हरण


शायद ही बच पाया उससे कोई 

बताओ

किस कारण से मेरा नाम 

कुम्भकरण।।


भाई निद्रा के घोर शिकार मुझमें 

लगा ग्रहण

जगाओ तो न जागूँ, भगाओ न 

करूँ भ्रमण


रोको सोने से, मुझसे न करो 

दुःसाहस

शायद यह नींद ख़त्म हो,

जब हो मरण।।


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