शुभरात्रि
शुभरात्रि
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रात होने को है
घनी
मैं कहता हूँ
शुभ रात्रि,
जवाब दो न
कहाँ गए
मेरे अधूरे ख़्वाब,
मेरे जज्बात
मरना नहीं,
जिन्दा रहो
मेरे सीने में दफ़न
कल फिर कौन
साथ होगा तन्हाइयों में
मेरे लिबास से लिपटा
मैं ढूंढूंगा तुम्हें
तरके कल
ओढ़ लूंगा फिर से
बन के निकलूंगा कल
मैं सूरज की रोशनी में
डर तो होगा नहीं तब
घुप्प अँधेरे का......