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Nalanda Satish

Abstract Tragedy Action

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy Action

मनमानी

मनमानी

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हुक्मरानों को गिड़गिड़ाते हुए देखा है

चुनाव आये तो मुंह में घी शक्कर रखते हुए देखा है


जो करते थे मनमानी हरकतें हर वक्त 

उनको भेड़ो की तरह मिमियाते हुए देखा है


आसमान भी झुका करता है कहीं एक जगह

पक्ष को विपक्ष से अंधेरे में गले मिलते देखा है


दहाड़ के पीछे डर कही शामिल है

मासूम बेगुनाहों को खदेड़ते हुए देखा है


रात आती है रोजाना सपनों में खोने के लिए

कुछ लोगों को कत्ल की साज़िशें करते हुए देखा है


कल देर रात जनता के हित में लिए गए थे कुछ फैसले

सुबह होते ही गंगा में बहते हुए देखा है


इस मगरूरी में कुछ भी नहीं रखा है 'नालंदा'

किया धरा अपना ही चार गुना वापस आते हुए देखा है



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