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Nalanda Satish

Abstract

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Nalanda Satish

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तरक्की

तरक्की

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वतन की तरक्की का आलम न पूछो

श्मशानों में भी लाशो की कतारें लगा गए

इस भीड़ में खो गए हैं हम सभी

इंसान को जिंदा देखे जमाने गुजर गए

एक जुनून था अफसानों को हकीकत में बदलने का

अफवाहों के जंगल से नग्मे स्वर्ग सिधार गए

चाँदनी रातो में भी सुलगता रहा बदन

पग पग पर जकातो के जो जखीरे लगा गए

दम घुट रहा है सांसो की दादागिरी से

हवाओं तुमने झरोखों पर पहरे जो लगा दिए

हीरा समझकर बेशक़ीमती, पत्थर जड़ दिया

न जाने कैसे जहनो पर हमारे पर्दे पड़ गए

स्वर्णिम भविष्य की चाह में ' नालन्दा'

बद से बदतर हालात में पहुंचाए हम।



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