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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

सैलाब

सैलाब

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पत्थरो ने अपना काम कर दिया ठोकरे खिलाकर

तुम्हारी नासमझी इस कदर सिर चढ़ी तो क्या दोष तकदीर का


चक्रव्यूह रचाकर काम कर दिया दुश्मनो ने

तोड़कर इसे बाहर न निकल सके तो क्या दोष मुकद्दर का


शाबाशी और खंजर पीठ पर ही करते है वार

शक्कर और नमक का फर्क समझ न सके तो क्या दोष पानी का


सिकुड़ जाती है आँखो की पुतलियाँ रो-रोकर 'नालन्दा'

असन्तोष और बगावत का फर्क न समझ सके 

तो क्या दोष सैलाब का।


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