माँ
माँ
जीवन की खट्टी यादों में, मीठा सा इक पल है मां
जो गुजरा बस सुखमय होकर, ऐसा मेरा कल है मां
घर के चुल्हे चौके में ही, जीवन जिसका बीता है
वो गंगा सी पावन धारा, वो पावन सी गीता है
मन में उलझे भावों का, सुलझा सा इक हल है मां
जो गुजरा बस सुखमय होकर, ऐसा मेरा कल है मां
खुशियों की खुशबू के जैसे, घर गुलशन महकाती है
दु:ख के कड़वे अनुभव पर, माथे शिकन ना लाती है
कहते है पुण्य कर्मों का, हमने पाया फल है मां
जो गुजरा बस सुखमय होकर, ऐसा मेरा कल है मां
बेसन की सौंधी रोटी पर, मक्खन मेवा जैसी मां
घर आंगन को मंदिर करती, ईश्वर सेवा जैसी मां
अप्रतिम अनुभूति देता, ऐसा निर्मल जल है मां
जो गुजरा बस सुखमय होकर,ऐसा मेरा कल है मां
मेरी चोट पे रोने वाली, मरहम की इक पट्टी मां
कभी प्रेम सी मीठी होती, कभी डांट सी खट्टी मां
हर परेशानी कम हो जाती, हिम्मत का इक बल है मां
जो गुजरा बस सुखमय होकर, ऐसा मेरा कल है मां।