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Devendraa Kumar mishra

Abstract

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Devendraa Kumar mishra

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आइना

आइना

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मैं आईने बेचता हूँ 

क्या तुम खरीदोगे 

मेरे आईने में दिल की महक है 

मेरे आईनों में सूरत ही नहीं 

सीरत भी नज़र आती है 


इस आईने को देखो, आदमी का दिल है 

सुन्दर, सपन, सलोना, जन्नत का जैसे कोना 

इस दिल से आदमी का देखा नहीं जाता रोना 

इस दिल को साथ रखना 

आदमी बने रहोगे 


इस आईने को देखो, रोटी का असर है 

दुनियां को खा गई ये, आदमी की कसर है 

ईमान बिक गया है, आदमी गिर गया है 

शहरों का आदमी श्मशान बन गया है 

ये आईना तो देखो, कुछ और ही है बताता 


भोली सूरत है जिनकी, वो चोर नजर है आता 

सच की करते हैं बातें, काले धन के राजा 

चेहरे पे न जाना, धोखे में रहोगे।


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