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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

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Devendraa Kumar mishra

Tragedy

मोड़

मोड़

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हम आज भी खड़े हैं उसी मोड़ पर 

जहां तुम गए थे छोड़कर 

बैठे हुए हैं बेवफाई का कफन ओढ़कर 

तुमनें जहां से गए थे सपने तोड़कर 

कोई उम्मीद नहीं है तुम्हारे आने की 

अब क्या करें, बैठे हैं ये सोचकर 

जैसे मुर्दा बस जलता है या दफन होता है 

दिल के टुकड़े टुकड़े उठा रहा हूँ,न जाने क्या सोचकर.



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