द्रौपदी
द्रौपदी
एक वीरांगना की दास्तां।
पत्नी के रूप में ना कोई सम्मान,
ना माँ के रूप में कोई अभिमान।
था तो बस,
एक बेजान रानी का स्थान।
हिन्दू पौराणिक कथाओं की पहली नारीवादी थी...
अबला नहीं, वो दृढ़ इच्छाशक्ति वाली नारी थी।
सीता-सावित्री से थोड़ी भिन्न उसकी कहानी थी।
उसका जीवन दुख और अपमान की वीर-गाथा है।
संघर्ष और बलिदान से भरी एक दुखद कथा है।
यज्ञ से जन्मी अनचाही संतान,"याज्ञसेनी" था उसका नाम,
कृष्ण-सखी, कृष्ण सी काया, "कृष्णा" कहकर करते सम्मान।
ना विवाहिता, ना प्रेयसी, बस कौशल का अधिकार।
हर किसी ने समझा उसको बस एक सादा आहार।
जिसको मान अपनी संपत्ति, पांडव गए दांव में हार।
सभा देखती रही सब कुछ साधकर मौन,
इस अपमान का जवाब आखिर देगा कौन?
भरी सभा के सामने उसने यह प्रश्न उठाया,
कैसे घर कि इज्जत को सरेआम उड़ाया?
धर्म की अवधारणा पर यह प्रश्न चिह्न लगाया।
एक स्वाभिमानी स्त्री ने करवाया युद्ध का हाहाकार,
हस्तिनापुर के अधर्मी पुरुष, क्या इतने थे लाचार?
अपने हक की आवाज उठा कर ,
किया उसने रूढ़िवाद पर वार।
ख़ुद पर हुए अत्याचारों के खिलाफ उठाई आवाज।
पुरुष प्रभुत्व को ठुकरा कर, किया स्त्री शक्ति पर नाज़।
बदनामी के अंधेरे में वो
बनकर उभरी, रोशन दीया।
पांडवों ने द्रौपदी को क्या दिया?
एक रिक्त मुकुट, और सिसकियां।
महाभारत है एक रक्तपात, सौंदर्य, जीत-हार का किस्सा।
तो पांचाली है वह आभूषण जो महाभारत का है अटूट हिस्सा।
कौन जाने इस धर्म युद्ध में कौन जीता कौन हारा।
इस धर्म युद्ध की गाथा को द्रौपदी ने ही है निखारा।