STORYMIRROR

panchii singh

Tragedy

3  

panchii singh

Tragedy

एक औरत

एक औरत

1 min
245

गहरे जख्म लिए तन पर, चेहरे पर मुस्कराहट,

आंखों में आंसू और सांसों में थरथराहट।

ना उम्मीद की किरण, रेगिस्तान सी जिंदगी,

लगा दी गई उसकी आजादी पर बंदगी।


शब्दों की तकरार बन गई अब वार,

दहेज की मांग का ना कर पाई तिरस्कार।


कैसा ये नजारा हैवानियत का,

मिटने लगा नामोनिशां इंसानियत का।

रात के अंधेरे में मौत का मंज़र,

किसी को फांसी तो किसी को खंजर।


कभी होता उसके चरित्र पर आघात,

कहीं बाल-विवाह तो कहीं गर्भपात।


बहुत सुन ली गालियां, अब ना चुप रहूँगी।

ये कमबख्त इल्जामात अब ना सुनूँगी।

नफ़रत में लिपटी डरी सहमी जिंदगी।

ये ज़लालत, ये दहशत अब ना सहूँगी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy