चैतन्य की तलाश
चैतन्य की तलाश
झरनों सी बहती है उम्मीदों की चाशनी,
उसमें डूब कर तू स्वयं की तलाश कर।
आज नहीं तो कल मिलेगा तुझे पारस,
तो उठ खड़ा हो और फिर प्रयास कर।
पथ में आएंगे शिलाखंड अनगिनत ,
चीरकर उनको तू पगडण्डी तलाश कर।
तेरे प्रारब्ध में जो ना हो लिखा कहीं,
आज फिर उस मुकद्दर की तलाश कर।
एक अदृश्य सा युद्ध है खुद के ही विरुद्ध,
जंग-ए- समापन तू करे, बस इतनी सी आस कर।
उठा शस्त्र, फ़तह कर विश्व और राज कर,
बुझ गया जो दिया, उसकी दीप्ति तलाश कर।
बहने दे झरने को तू नदियों में वास कर,
लहरों से लड़ -झगड़ अब ना मन उदास कर।
ये जंग है तेरी, तेरा लड़ना ज़रूरी है ,
बिन लड़े ही जीत जाएं, ना ऐसी तू आस कर।
उठ खड़ा हो तू आर कर या पार कर,
ना मन उदास कर, तू खुद की तलाश कर।
आज एक बार फिर तू प्रयास कर
और मह-ए-कामिल का दीदार कर।