बाट जोहती किताब
बाट जोहती किताब
शब्दों की तस्करी के अंधेरे में
रोशनदान से बचती रहती हूँ।
थकी धुंधली नज़र लिए
झुर्रियों से घिरी रहती हूँ।
गूढ़ वृत्तान्त, अन्तर्मुखी-औचाट का
सैलाब लिए बहती हूँ।
लडखड़ाती बेजान परिश्रांत
महक सी बिखरी बैठी हूँ।
मैं पुस्तकालय की अस्तित्वहीन किताब हूँ।
अपने योग्य पाठक की तलाश में।
