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panchii singh

Tragedy

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panchii singh

Tragedy

बाट जोहती किताब

बाट जोहती किताब

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शब्दों की तस्करी के अंधेरे में

रोशनदान से बचती रहती हूँ।


थकी धुंधली नज़र लिए

झुर्रियों से घिरी रहती हूँ।


गूढ़ वृत्तान्त, अन्तर्मुखी-औचाट का 

सैलाब लिए बहती हूँ।


लडखड़ाती बेजान परिश्रांत

महक सी बिखरी बैठी हूँ।


मैं पुस्तकालय की अस्तित्वहीन किताब हूँ।

अपने योग्य पाठक की तलाश में।


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