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Juhi Grover

Tragedy Inspirational

5.0  

Juhi Grover

Tragedy Inspirational

आज़ादी का मतलब

आज़ादी का मतलब

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560


बड़े खुश हैं हम आज़ाद हो कर के,

मगर आज़ादी का मतलब जानते हैं?

कुछ भी करें आज़ाद है अब तो हम,

अधिकार ही हैं,फर्ज़ कहाँ मानते हैं।


आज़ादी है मनमानी करते रहने की,

शोरगुल में आवाज़ दबाते रहने की,

अन्धा-धुन्ध दंगे भड़काते रहने की,

कहाँ हिम्मत पीर पराई अपनाने की।

बड़े आज़ाद यों बने आज फिरते हैं,

स्वार्थ से ऊपर कहाँ कुछ जानते है।


ज़िन्दगी मिली है, किस कीमत पर,

खून बहाया है वीरों ने जीवन भर,

नहीं झेलते गोली ग़र वो सीने पर,

रहते कैसे तुम आज़ाद यों धरा पर।

दिखावे का संसार यों लिये फिरते हैं,

ग़ैर को खून देना भी कहाँ जानते हैं।


बढ़ रहे हैं अत्याचारी व अत्याचार,

बढ़ रहे हैं भ्रष्टाचारी व भ्रष्टाचार,

गंवा रहे है यों जीवन रूपी उपहार,

बढ़ रहा है क्यों जीवन में प्रतिकार।

जीवन का अपमान किये फिरते हैं,

क्षमा करना आखिर कहाँ जानते हैं।


ज्वाला धधक रही यों कतरे कतरे में,

घृणा की संवेदना जल रही सीने में,

प्रेम का सबक सीखा बस बचपन में,

आया कैसे अहंकार फिर व्यवहार में।

नफ़रत की आंधी ही लिये फिरते हैं,

समर्पण का भाव अब कहाँ जानते हैं।


ज़िन्दा लाश बन‌ गये जीते जी तुम,

मौत‌ का सामान बन गये खुद तुम,

अपनों का चोला पहन कर यों तुम, 

क्यों परायों से लग रहे हो आज तुम।

ज़िन्दगी की दुहाई वो दिये फिरते हैं

,

शमशान का रास्ता भी कहाँ जानते हैं।


बैठे हैं यों तो सीमा रक्षा पे पहरेदार, 

कभी कभी सरकार भी होती वफ़ादार,

चीत्कार सुन भी लेते हो समय पर, 

क्यों हो फिर भी इतने गैर-ज़िम्मेवार।

देशभक्ति का बस ढोंग लिये फिरते हैं,

देशद्रोह का मतलब भी कहाँ जानते हैं।


नालंदा, तक्षिला सा इतिहास ले बैठे हैं, 

गुरुकुल, मठ विद्या सा सम्मान ले बैठे हैं, 

चाहिए फिर भी आज क्यों विदेशी शिक्षा,

भारतीय संस्कृति का अपमान ले बैठे हैं।

उच्च शिक्षा का यों प्रमाण लिये फिरते हैं, 

सभ्यता का आधार अब कहाँ जानते हैं।


शहीद भगत सिंह से वीर नहीं रह पाये, 

मिट रही अब धीरे धीरे उन की कहानी, 

रानी झांसी सा साहस भी रुक न पाया, 

रक्त वाहिनियों में क्यों भर गया पानी।

कायरता का भी ठहराव लिये फिरते हैं,

खामोंशियों सा शोर कहाँ पहचानते हैं।


समय नहीं बिगड़ा अभी, अब समझ लो, 

खून खौलना चाहिये इक इक चीत्कार पे,

बन जाओ दुर्गा, काली, या शिव,यमराज,

लाखों रक्षक खड़े हों,हर इक हाहाकार पे।

कदम कदम पे यों हिम्मत लिये फिरते हैं,

मग़र खुद को हम अब कहाँ पहचानते हैं।


बड़ी खुशियों से तब आज़ादी पर्व मनाओ,

आज़ादी का मतलब समझो और समझाओ,

आज़ाद तो हम हैं ही, गुलामी से दूर रहो, 

अधिकारों के साथ अब फर्ज भी मानते हैं।


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