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Juhi Grover

Abstract Tragedy

4  

Juhi Grover

Abstract Tragedy

दृष्टिकोण

दृष्टिकोण

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मैं कौन हूँ, क्या हूँ, 

कहाँ से आई हूँ, 

कुछ समझ नहीं आता।


जो भी हूँ, 

जहाँ से भी आई हूँ, 

कोई भी नहीं पूछता।


न बहन हूँ, न बेटी हूँ, 

और न ही माँ बन पाई,

लड़की ही है समझ आता।


सोचने के लिए मजबूर हूँ, 

सब की बहनें हैं, 

सब की बेटियाँ भी हैं, 

बिना माँ के भी कोई नहीं, 

दूसरों के लिए दृष्टिकोण वैसा क्यों नहीं रहता? 


अगर कहीं हम अपनी ही बहन

या फिर बेटी को भूल जाएँ, 

हमारी माँ किसी भद्दी सोच की शिकार हो जाए,

तो क्या कोई दूसरा साथ देगा, 

उसका दृष्टिकोण क्यों बदलेगा ?


दूसरों के लिए जब हम खड़े होना सीखेंगे,

तभी कोई हमारे लिए सामने आयेगा, 

समय निसंदेह लगेगा, 

मग़र हमें इतना भी समझ नहीं आता।


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