हर मसला बखूबी सुलझाने रहोगे
हर मसला बखूबी सुलझाने रहोगे
आखिर कब तक तुम अपनी प्रेम गाथा सबके सामने गुनगुनाते रहोगे,
'मैं सच्चा वो झूठी या फिर मैं सच्ची वो झूठा', कब तक बताते रहोगे?
तुम ने सब कुछ उसका बता दिया या फिर कोई भेद भी छिपा लिया,
अगर सब कुछ उसका सुना ही दिया, कब तक सच्चा बनते फिरोगे?
माना कि तुम उसके थे और वो तुम्हारी फिर क्या लाज रखी तुमने उसकी,
यों हर बार उसी का चेहरा सबके सामने अब कब तक दिखाते रहोगे?
जीने की तुम्हारी वो वजह थी तो क्या उसके जीने की तुम वजह नहीं थे,
बिना उसकी आँखों में देखे बिना वजह ढूँढे कब तक गुस्सा जताते रहोगे?
या फिर कहो तुम कि तुमने वजह जानी या फिर कोशिश ही की हो,
जान पाए कभी तुम उसकी मजबूरी,कब तक गलती छिपाते रहोगे?
दिखाये होंगे उसने अपने आँसू, मग़र तुम तो पत्थर बन चुके थे,
अपने ही आँसू देख कर तुम अब कब तक खुद को ही भरमाते रहोगे?
मगरमच्छ के आँसू उसके मान तुमने तो दिल को सम्भाला हुआ है,
और कब तक एक दूसरे को पत्थरदिल मान कर खुद को समझाते रहोगे?
ग़ैरों की बातें मान कुछ गिले-शिकवे तुमने जो अन्दर पाले हुए हैं,
नासूर उनको समझ भरोसेमन्द साथी को तुम कब तक सज़ा देते रहोगे?
यक़ीन मानोगे तुम भी गलतफहमियाँ तो बेवजह ही बन जाती है,
सच्चाई पता चलेगी तो दूरियाँ मिटाने की तो बस वजह ही ढूँढते फिरोगे।
याद रखो बस इतना कि कोई गिला-शिक़वा नासूर न कभी बन जाए,
उम्र भर की सज़ा से तो अच्छा है, हर मसला बखूबी सुलझाते रहोगे।