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Juhi Grover

Abstract Tragedy

3.9  

Juhi Grover

Abstract Tragedy

ज़िन्दगी का फरमान

ज़िन्दगी का फरमान

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बाज़ार में खूबसूरती का वो सामान हुए बैठे हैं,

दिल में दर्द और होठों पर मुस्कान लिए बैठे हैं।


कोई नहीं टटोलता किसी रूह को इस जहाँ में,

सब के सब अपने जिस्म बेजान लिए बैठे हैं।


किस को किस की परवाह है आखिर यहाँ पर,

सब अपनी गीता और अपनी कुरान लिए बैठे हैं।


दुनिया है इस तरह खत्म होने की कगा़र पर,

वो अपना पाकिस्तान,हम हिन्दुस्तान लिए बैठे हैं।


ज़िन्दगी की इल्तिज़ा करें क्यों किसी से आखिर,

वो इन्सानियत का ही बस कब्रिस्तान लिए बैठे हैं।


कज़ा का आशियाना बनती जा रही है दुनिया,

मग़र वो अपने और हम अपने अरमान लिए बैठे हैं।


कभी तो कोई आ कर के सबको यकीन दिलाए,

हम उनके लिए हथेली पे रख के जान लिए बैठे हैं।


ज़िन्दगी का एहसास हो जाए,मौत से दूर कर जाएँ,

हम ही तो आखिर उनके लिए इन्सान हुए बैठे हैं।


मौत से बचाने आए, मग़र ज़िन्दगी से क्यों दूर हुए,

हम तो तुम्हारे लिए कब से बस भगवान् हुए बैठे हैं।


समझो हमारे एहसास को, हमारी सिफ़ारिशों को,

बस तुम्हारे लिए ही ज़िन्दगी का फरमान लिए बैठे हैं। 


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