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Soniya Jadhav

Abstract

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Soniya Jadhav

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चाह

चाह

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एक उम्मीद कितने ख़्वाबों का सबब बनती है।

कुछ कर गुज़रने की चाह ही तो,

जिंदगी का सफर तय करती है।

मुश्किलों की आंधी छाती है कभी,

तो कभी तेज़ हवाएं बहा ले जाने की नाकाम- कोशिश करती हैं।

एक चाह ही तो है आसमान को छूने की,

जो क़दमों को ज़मीं से बांधे रखती हैं।

उम्मीद ना हो सुबह की तो, रात व्यर्थ लगती है।

चाह ना हो सीने में तो, जिंदगी लाश लगती है।

एक चाह ही तो है, आसमाँ को छूने की

जो दिल में धड़कन का काम करती है।



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