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Soniya Jadhav

Tragedy

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Soniya Jadhav

Tragedy

पिंजरा

पिंजरा

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अजीब सी स्थिति है मन की

सदा असमंजस में रहता है।

नीले-गुलाबी आसमाँ में उड़ने का मन तो करता है,

लेकिन पिंजरे को तोड़कर,

खुले आसमाँ तक जाने की इच्छा,

मन कभी ज़ाहिर ही नहीं करता है।


पिंजरे में कैद जबरन किसी ने किया नहीं,

ना जाने कब और कैसे खुद से कैद हो गयी हूँ ?

आदत की इतनी गुलाम हो चुकी हूँ

कि खिड़की से देखती हूँ सब,

बाहर की दुनिया देखने का मन ही नहीं करता।


कितनी बार चाहता है मन बहुत कुछ करना

और फिर कुछ भी नहीं करना चाहता है।

ना जाने कैसी स्थिति है यह,

एहसास है शायद मर रही हूँ मैं,

फिर भी लगता है, अभी जिन्दा हूँ मैं।


मुझ जैसे लोग जिंदगी से शिकायत करते हैं

खुद के बनाए पिंजरे में खुद ही कैद होकर,

आसमाँ छूने की ख्वाहिश करते हैं।

बांधे गए जिस खूंटे से, उसी से प्यार कर लिया,

खोले भी गए, तो चाहत ही नहीं रही कहीं दूर जाने की।


किसी ने कान में कहा, बाहर की दुनिया अच्छी नहीं है

और बिना सच जाने यक़ीन कर लिया।

दोष किसी का नहीं, मेरा ही है,

पिंजरे को यूँ जो चुपचाप क़ुबूल कर लिया।


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