किताब
किताब
जिंदगी की किताब में
कुछ पन्ने ऐसे भी होते हैं।
जो जबरदस्ती लिखे गए होते हैं।
शुरुआत के पन्नों में शब्दों की आकृति
खूबसूरत सी जान पड़ती है।
शब्द भी प्यार से लबरेज़ होते हैं।
जैसे-जैसे किताब के मध्य में पहुँचते हैं
शब्द कुछ गीले, कुछ धुंधले नज़र आते हैं।
पन्नों का रंग सफ़ेद से पीला हो जाता है
फ़टे हुए, अधूरे पन्नों को
अपने अंतस में छिपा लेती है।
इस तरह किताब मृत होकर भी,
जीवित रहती है।