रूहानी इश्क
रूहानी इश्क
मैं सौंपना चाहती थी तुम्हें रूह अपनी,
ताकि मरने के बाद भी तुम्हारे करीब रह सकूँ,
लेकिन तुम जिस्म की बारीकियों में उलझे रहे।
मैं बनाना चाहती थी तुम्हें खुदा अपना,
लेकिन तुम वो इश्क बन ही ना सके।
मैं तुम्हारी रूह में मिलकर खुद को खोना चाहती थी,
लेकिन तुम जिस्म से आगे कभी बढ़ ही ना सके।
छोड़ना मुनासिब समझा इस रिश्ते को यहीं मैंने,
कुबूल नहीं था मुझे सिर्फ एक जिस्म बनकर जीना।