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Soniya Jadhav

Tragedy

4  

Soniya Jadhav

Tragedy

इज़्जत

इज़्जत

2 mins
420


मैं कैद हूँ घर में,

और वो आज़ाद पंछी सा उड़ रहा है।

मेरी देह के हर एक हिस्से से खून रिसता है,

स्वयं से घृणा महसूस होती है,

दर्द का सैलाब आँखों को छलनी करता है,

और वो बेफिक्र सा सड़कों पर खुले आम फिरता है।

बलात्कार केवल शरीर का ही नहीं, 

मेरे हर ख़्वाब, हर ख्वाहिश का हुआ है।

मुझे उड़ने का शौक था, लोगों ने कहा

यह सब तुम्हारी सिर से ऊँची ख्वाहिशों के कारण ही हुआ है।

समाज कहता है, लुट जाती है जिन लड़कियों की इज़्ज़त उनकी शादी नहीं होती,

समझ नहीं पायी , क्या लड़की की इज़्ज़त सिर्फ उसके निजी हिस्से में कैद होती है?

मैं पीड़ित हूँ और मैं ही दोषी भी हूँ,

क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ।

एक बलात्कारी एक पिता, पति और किसी ऊँचे पद पर कार्यरत हो सकता है।

और बलात्कार से पीड़ित स्त्री का घर से लेकर बाहर तक सिर्फ चरित्र अवलोकन ही होता है।

पुरुष को अधिकार है, किसी भी रूप में औरत के स्वाभिमान को कुचलने का,

उसके लिए कानून बनाने, उसे सज़ा देने और उसकी सीमायें तय करने का।

हाँ स्त्री के पास भी एक विकल्प है, दर्द सहकर भी लड़ने का, 

उसकी बनायी हर सीमा को तोड़कर, उसके अहँकार को चूर-चूर करने का।

मैंने भी यह तय किया है, मैं अपना चेहरा अब नहीं छिपाउंगी, 

मैं लड़ूंगी लड़ाई अपनी, उसे सज़ा दिलवाऊंगी।

ना रोऊंगी अब, ना टूटूंगी,

मैं अपने ख्वाबों को फिर से सजाऊँगी,

मैं आत्मनिर्भर बनूँगी और जिंदगी को अपनी शर्तों पर ही जिऊंगी।

इज़्ज़त उसकी लूटी है, जिसने अपराध किया है।

मेरी इज़्ज़त को कोई दाग़दार कर सके, ऐसा किसी में साहस नहीं है।

मेरी इज़्ज़त मेरी योनि में कैद नहीं है।



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