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Dheeraj Srivastava

Tragedy

5.0  

Dheeraj Srivastava

Tragedy

जाने कितनी बार ठगा

जाने कितनी बार ठगा

2 mins
827


मन के भोलेपन को तुमने

जाने कितनी बार ठगा।


जो कुछ भी था मेरा अपना

कर डाला सब तुमको अर्पण !

देख तुम्हारे छल प्रपंच को,

जी भर रोया व्यथित समर्पण !

स्वप्न दिखाकर केवल झूठे

सच्चा पावन प्यार ठगा।


मन के भोलेपन को तुमने

जाने कितनी बार ठगा।


छाती से चिपकाकर सुधियाँ

पीड़ाओं ने लोरी गायी !

सहलाया दे- देकर थपकी

पर जाने क्यों नींद न आयी !

कर्तव्यों की अनदेखी कर

मनचाहा अधिकार ठगा।


मन के भोलेपन को तुमने

जाने कितनी बार ठगा।


निष्ठुरता ने भला प्रेम के

गीत सुकोमल कब हैं गाये !

पाषाणों ने कब लहरों की

धड़कन पर हैं कान लगाये !

ठगा सिन्धु सी गहराई को

नभ जैसा विस्तार ठगा।


मन के भोलेपन को तुमने

जाने कितनी बार ठगा।


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