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Dheeraj Srivastava

Tragedy

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Dheeraj Srivastava

Tragedy

कुर्ते में नील

कुर्ते में नील

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रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील।

उसकी खुशियाँ उसके सपने वक्त गया सब लील।

बिन पानी के मछली जैसे

तड़प रहा वह आज।

बिटिया अपनी ब्याहे कैसे

और बचाये लाज।

संघर्षों में सूख चली है आँखों की भी झील।

रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील।

शहर दिखाये ले जाकर जब

दो हजार हों पास।

संगी साथी कौन दे रहा

नहीं किसी से आस।

ठोक रही बीमारी माँ की छाती में बस कील।

रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील।

कर्म भाग्य का नहीं संतुलन

बनी गरीबी गाज।

देखे जो लाचारी इसकी

ताक लगाये बाज।

व्यंग्य कसे मुस्काये अक्सर खाँस-खाँस कर चील।

रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील।

फिर भी हिम्मत क्यों हारे वो

जीना है हर हाल।

पटरी पर ला देगा गाड़ी

आते-आते साल।

रोज-रोज आशाएँ दौड़ें जाने कितने मील।

रामपाल अब नहीं लगाता है कुर्ते में नील।



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