हर शख़्श आज नकाब में नज़र आता है
हर शख़्श आज नकाब में नज़र आता है
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आज हर शख्श दुनिया का
नक़ाब में नज़र आता है
उसकी हरकतें को देख़
नक़ाब भी शरमाता है
बड़े चातुर्य से मानव
मानव को भरमाता है
आज गिरिगिट छलावा में
मानव के पीछे रह जाता है
एक समय रंग बदलना
मनोरंजन की कला थी,
जो मानव रूप बदलके
विदूषक बन के निभाता था
आज लोगो को लूटने का
दुष्कर्मी दूषण बन गया है
जो मानव के संस्कार छोड़
नीच दुर्जन बनकर रचाता है।