आत्मज्ञान की यात्रा [[भाग-7]]
आत्मज्ञान की यात्रा [[भाग-7]]
[[ आचारः परमो धर्मः ]]
आचारहीनं न पुनन्ति वेदाः
आचारवान् होना सभ्यता की पहली सीढी़ है...
धन दौलत पद प्रतिष्ठा बल आरोग्यता
पुत्र कलत्र रूप कला बुद्धिमत्ता
ये आपके पास हैं तो
ये आपके ही स्वार्थ की पूर्ति करेंगे..!!
इनसे आपके ही परिवार का पोषण होगा...
समाज के काम आएगा
केवल और केवल आपका आचरण ....
अतः आचरण ऐसा करिये जो सभ्य हो ...
सभायां साधुः इति सभ्यः
सभा के जो लायक हो वही सभ्य कहलाता है....
सभी पूजा पाठ तपस्या धर्म उपासना
व्रत यज्ञ उसी के सफल होते हैं
जो सच्चरित्रवान् है..!!
बिना आचरण के आपका कोई
कार्य ईश्वर की ओर स्वीकृत नहीं होगा...
सद्आचरण अध्यात्म की पहली
और आधारभूत सीढ़ी है...
आचारहीन को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते..!!
आचारः परमो धर्मः ।।