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Dheeraj Srivastava

Others

4.9  

Dheeraj Srivastava

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आँखों का पानी

आँखों का पानी

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लड़ा उम्र भर जेठ निरन्तर पूस करे जी भर मनमानी।

उस पर बैठा मीत हृदय में उलच रहा आँखों का पानी।


अंगारो पर रात काटकर

जैसे तैसे खड़े हुए हैं।

शूलों पर ही चलते चलते

हम दुनिया में बड़े हुए हैं।


रोटी तक को बचपन तरसा खूब हुई हैरान जवानी।

उस पर बैठा मीत हृदय में उलच रहा आँखों का पानी।


सागर पार खुशी है बैठी

बाँट रही हैं पीर दिशाएँ।

कर्तव्यों ने कान उमेठे

बनके धूल उड़ी इच्छाएँ।


अंतरिक्ष के पन्नों पर बस लिखे ज़िन्दगी रोज कहानी।

उस पर बैठा मीत हृदय में उलच रहा आँखों का पानी।


सम्मानों ने सदा चिढ़ाया

भाग्य घूमता मुँह लटकाए।

साथ न छोड़ा किन्तु कर्म ने

पर अपनों ने भाव घटाए।


रोज हवाएँ जहर पिलातीं साँसे करतीं खींचा-तानी।

उस पर बैठा मीत हृदय में उलच रहा आँखों का पानी।


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