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Dheeraj Srivastava

Tragedy Others

4.9  

Dheeraj Srivastava

Tragedy Others

मुन्नीबाई

मुन्नीबाई

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बीत चला है पूरा जीवन, निकला कुछ भी सार नहीं।

किसको दर्द सुनाये अब वो कोई भी तैयार नहीं।


छम - छम करते घुंघरू उसके

दीवाना कर जाते थे।

सुरमे वाली अँखियों में बस

डूब सभी मर जाते थे।


पर यौवन मुरझाया अब तो, नजरों में है धार नहीं।

बीत चला है पूरा जीवन निकला कुछ भी सार नहीं।


दासी थी कल तलक जवानी

जाने कितने शीश झुके।

पुलिस, दरोगा नेता, वेता

सभी शहर के ईश झुके।


तोड़ा है पर सबने नाता, अब जग का व्यवहार नहीं।

बीत चला है पूरा जीवन निकला कुछ भी सार नहीं।


जूझ रही है ग़म से अपने

बीमारी ने घेरा है।

मीत बनी हैं काली रातें

दिखता नहीं सवेरा है।


जीवन नैया डूब रही है, कोई भी पतवार नहीं।

बीत चला है पूरा जीवन, निकला कुछ भी सार नहीं।


जार- जार मन रोता उसका

अब आता सरपंच नहीं।

बातें किसे सुनाये दिल की

कोई भी तो मंच नहीं।


कष्ट लिखे जो आकर उसका ऐसा है अखबार नहीं।

बीत चला है पूरा जीवन निकला कुछ भी सार नहीं।


याद कर रही बीती बातें

बालों को है नोच रही।

सीलन वाले कमरे में है

मुन्नीबाई सोच रही।


बदहाली, बदनामी तो है सिर्फ मिला बस प्यार नहीं।

बीत चुका है पूरा जीवन निकला कुछ भी सार नहीं।


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