शून्य
शून्य
चलो! अब मैं कूच करता हूँ अपने घर की ओर,
क्योंकि ये काले बादल मेरे मनोप्रदेश में एक अज्ञात सा हर्ष मिश्रित भय उत्पन्न कर रहे हैं!
मैं चाहता था कि कुछ देर तक और करूँ प्रकृति की इस मनोरमता से मानसिक संवाद।
यह शीतल बयार मेरे शरीर को कुछ देर तक और स्पर्श करें।
पवन के साथ मिट्टी की ये जो सोंधी-सोंधी महक है,
मेरे जेहन के चलचित्रों से थोड़ा और संवाद करे और
इस संवाद से मेरे दिमाग में बने कल्पना चित्र कुछ समय तक और स्थिर हो जाएँ,
जिससे मुझे कुछ समय और पुरानी यादों का आलिंगन मिल सके और मैं जमीन पर बैठकर निहारता रहूँ इन पशुओं के अश्रुसिंचित नयनों की निरीहता और प्राकृतिक रहस्यों को,
मानो ये रहस्य मुझसे सीधा संवाद कर रहे हैं।
चतुर्मास की यह अनुपम छटा मेरे लिए किसी स्वर्गिक आनंद से कम नहीं है।
घर तक पहुँचने के क्रम में.. मैं यात्रा करूँगा अक्षय आनंद के साथ, इस हरियाली के साथ, कच्ची सड़क की यादों के साथ, इन काले बादलों के साथ, इस शीतल बयार के साथ अब मैं भी बच्चा बनने की कोशिश करूँगा!
परंतु यह क्या! मुझे घर की जिम्मेदारियाँ आवाज दे रहीं हैं अब मुझे जाना होगा.. जाना होगा.. जाना ही होगा।।
शून्य...