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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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विश्व_उम्मीद_दिवस

विश्व_उम्मीद_दिवस

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 अखबार में ‘उम्मीद दिवस' ये शब्द पढ़ते हुए एकाएक कामायनी की पंक्तियां, फिल्मी गीत "उम्मीदों से हैं घायल, उम्मीद पे ज़िंदा हैं" संग गूंजने लगी। साहित्य और फिल्मी गीत का ये मिक्सचर सोचने पर मजबूर कर गया कि ये उम्मीद है क्या?? अगर उम्मीद सकारात्मकता है, तो फिर आदमी उम्मीदों से घायल परिंदा क्यों हैं? ये सोचते ही प्रसाद की कामायनी धीरे से कान में फुसफुसाते हुए कहती है... “ज्ञान दूर कुछ, क्रिया भिन्न है, इच्छा क्यों पूरी हो मन की, एक दूसरे से न मिल सके, यह विडंबना है जीवन की।" उम्मीद, आशा कोई कोरी चीज़ तो नहीं कि जिसे एक कागज़ पर लिख रात में सिरहाने रख लिया और सुबह होते ही वो हकीक़त में बदल गई। लेकिन विडंबना यही है कि हमने इसे इससे ज्यादा न समझा । तो फिर उम्मीद क्या है ?? मन की भावना जब प्रश्न बन जाए तब कामायनी की नाव से ही उसे पार किया जा सकता है.... प्रलय के बाद जलप्लावित संसार में जब सब कुछ नष्ट हो गया था तब अकेला बच गया... केवल "मनु"... एक अर्थहीन अस्तित्व लेकर... कामायनी शुरू ही होती है, सर्वज्ञानी होते हुए भी असहाय हो चुके मनु की " चिंता" से। “हिम गिरि के उत्तुंग शिखर पर, बैठ शिला की शीतल छाँह। एक पुरुष, भीगे नयनों से, देख रहा था प्रलय प्रवाह।“ समय से बड़ा कोई मरहम नहीं... समय बीतता है सुबह आती है और स्वर्णिम किरणें प्रलय की रात को भी पराजित करती हैं। धीरे धीरे मनु को कुछ पौधे भी दिखाई देते हैं और न जाने कैसे इस भीषण दुख में भी जीने की "आशा" उसमें एक बार फिर जाग जाती है... "मैं हूँ... यह वरदान सदृश क्यों, लगा गूँजने कानों में! मैं भी कहने लगा, ‘मैं रहूँ’ शाश्वत नभ के गानों में।" मनु की आशा किसी कल्पना में नहीं टहलती,वो दिल पर हाथ रख ऑल इस वेल कहकर नियति के भरोसे नहीं जीती। वो संभावनाओं की ज़मीन तलाशती है। मनु सोचता है कि इस भयंकर जल प्रलय से जिस प्रकार वो बच गया, हो सकता है शायद कोई और भी बच गया हो।मनु इस आस में यज्ञ कर्म के पश्चात जो अन्न बचता, उसमें से कुछ अंश कहीं दूर रखने लगा । इस सकर्मण्य आशा का फल एक दिन मनु को मिलता है, जब मनु के जीवन में प्रवेश करती है — श्रद्धा...। जल प्रलय के पश्चात मनु के समान वह भी जीवित बच जाती है । "श्रद्धा " एक स्त्री, जो सिर्फ़ व्यक्ति नहीं है, एक भाव है। जो मनु के अर्थहीन हो चुके जीवन को अर्थ और स्थिरता से भर देती है। उसे विश्वास देती है कि जीवन फिर से बन सकता है। वो मनु के भीतर प्रेम और आत्मीयता जगाती है। "आज से यह जीवन उत्सर्ग इसी पद तल में विगत विकार। दया, माया, ममता लो आज, मधुरिमा लो, अगाध विश्वास; हमारा हृदय रत्न निधि स्वच्छ तुम्हारे लिए खुला है पास।" चिंता से शुरू होते हुए आशा से श्रद्धा तक मनु की यात्रा बहुत गहरी है, जहां उम्मीद,आशा एक शब्द नहीं है, जिजीविषा है, जीने के लिए किया गया एक यज्ञ है। आज "उम्मीद दिवस" पर उम्मीद जगाइए,एक ऐसी उम्मीद जिसमें प्रयास भी हो, वो उम्मीद नहीं की फ़्रीज़ में रखा लड्डू मेरे हाथ में आ जाए। उम्मीद का अर्थ समाधान नहीं है, समाधान की ओर देखना है... वो परिणाम नहीं, प्रयास की अनुमति है... वो अनुमति,जो समझ आ जाए तो व्यक्ति की जिंदगी पूरी तरह से पलट दे। व्याप्ति उमड़ेकर


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