अधूरी ख़्वाहिश
अधूरी ख़्वाहिश


कैसे मिलाऊ नजरे तुझसे मेरे बच्चे,
सोचा था इस बार तेरे फटे जूते बदल दूंगा।।
पर मेरी छोटी सी महीनें भर की तन्ख्वाह ना जाने
क्युं इस सर्द रातो सी ठिठुर गई,
तेरी नन्ही ख्वाहिश को पूरा करने से पहले ही
दादी की दवाई,तो गुड्डी की फटी फ्रॉक मे ही बिखर गई। ।
कैसे मिलाऊ ये नजरें तुझसे मेरे बच्चे,
इस बार भी सोच रखा था तेरे फटे जूते बदल दूंगा,
पर तनख़्वाह आने से पहले ही
सर्द रातो की वो बारिश मे छत का टपकना।।
नहीं देख सकता तुम सब को यूं रात भर ठिठुरते हुये।।।
कैसे मिलाऊ नजरे तुमसे मेरे बच्चे,
इस बार सोचा
की तेरे फटे जूते बदल ही दूंगा,
घिस घिस कर तेरह घन्टे काम किया
महीनें के आखिर में तनख़्वाह संग कुछ पैसे आए।
खुश होकर निकला उस शाम बाज़ार, घर आने से पहले,
याद था मुझको लेने है पहले तेरे नए जूते।
अपनी ही धुन मे था चलता गया,
पता नही वो पीछे से आती कार ने कब टक्कर मारी,
अंखिया मूंद था पड़ा सड़क पर।।
हाथो मे था वो मेरे, तेरे नए जूते का थैला।।
बंद होती आँखों और सांसो से
उस पालक के, बस इतना निकला,
माफ कर देना मुझे मेरे बच्चे,
आज भी तूं अपने नए जूते के इन्तजार मे
घर के दरवाजे पर कान लगाए मेरी राह तकता तो होगा ।।।