भारत रत्न प्रणब मुखर्जी
भारत रत्न प्रणब मुखर्जी


भारत के हर एक दिल में रहेंगे ही सदा
पद्म विभूषण सपूत भारत रत्न प्रणब दा।
उन्नीस सौ पैंतीस की ग्यारहवीं तिथि
शुभ दिसम्बर यानी बारहवें मास की,
शुभ घड़ी थी वह जो इस धरा पर
अति शुभ आगमन के आप की।
बहुमुखी प्रतिभा की जन्मदायिनी
पुण्यभूमि थी प्यारे बंगाल की,
वीरभूम जिले के वीरवरआप हो
मिराती गांव याद रखेगा सदा।
भारत के हर एक दिल में रहेंगे ही सदा
पद्म विभूषण सपूत भारत रत्न प्रणब दा।
बीसवीं सदी के सातवें दशक के
अंतिम वर्ष में आये राजनीति में।
सारे दुर्गुणों से अछूते ही रहते हुए
काम करते रहे प्रवृत्त हुए न अनीति में।
मानवीय गुणों को सदा माना उचित
मान पाया सदा सबकी प्रीति में।
प्रशंसा करते न थकते विपक्षी भी
आपने मान पाया था सभी से सदा।
भारत के हर एक दिल में रहेंगे ही सदा
पद्म विभूषण सपूत भारत
रत्न प्रणब दा।
मान बढ़ाया संसद के उच्च सदन का
राजनीति में करते हुए आपने प्रवेश।
विविध पदों को आपने था सुशोभित किया
रहेगा कृतज्ञ सदा ही आपका सारा देश।
राजनीति में रहते हुए आप रहे अनुकरणीय
आचरण और व्यवहार की मिसाल की पेश।
आप सदा दलगत राजनीति रहे थे अलग
अजातशत्रु बनकर मर्यादा बनाए रखी सर्वदा।
भारत के हर एक दिल में रहेंगे ही सदा
पद्म विभूषण सपूत भारत रत्न प्रणव दा।
कह दिया अलविदा अगस्त के अंतिम दिवस
बीसवां तो वर्ष है यह इक्कीसवीं सदी का।
लोग विरले ही मिलते हैं जग में आपके सदृश
पूरा न हो सकेगा कभी नुकसान ये देश का।
आपका जीवन हम सबको प्रेरणा स्रोत है
सारा जगत रहेगा सदा ही ऋणी आपका।
बस नश्वर देह ही तो नहीं आपकी साथ
आदर्श और प्रेरणा सभी संग रहेगी सदा।
भारत के हर एक दिल में रहेंगे ही सदा
पद्म विभूषण सपूत भारत रत्न प्रणब दा।