सोच हमारी
सोच हमारी
हम बनाते मिटाते रहते सपने हजार,
सहायता अड़चन करते अपने हमार।
सोच जिम्मेदार ही सारी है,
इसमें हम आपकी।
सोच जिम्मेदार हमारी है,
आनंद -संताप की।
स्वार्थ भरे जगत में हैं सीमित हमारे अपने।
करें काम वे सभी जो करें पूरे सभी के सपने।
क्या है नीयत हमार,
जान लेता है संसार,
बदलते रिश्ते रिश्तेदार,
परख होती पुण्य -पाप की।
सोच जिम्मेदार हमारी है,
आनंद -संताप की।
अपनेपन की भावना हो तो कटु बात भी है भाती,
जब यह भाव ही रहे न तो है मृदु बात क्रोध लाती।
हमारे अपने ही संस्कार,
बढ़ाते हैं नफरत या प्यार,
बदलते रहते यह संसार,
स्थिति बेटे और बाप की।
सोच जिम्मेदार हमारी है,
आनंद -संताप की।
चालाकी सब हमारी कल जानेगा जग यह सारा।
सुख-दुख हैं आते -जाते होता हर हाल ही गुजारा।
कर्म तो बस ऐसे हों हमार,
गर्व करे जिन पर परिवार ,
अपनाए जिनको संसार,
इतिहास गाथा ही गाएगा,
अपकीर्ति या परताप की।
सोच जिम्मेदार हमारी है,
आनंद -संताप की।
है मौत ही सुनिश्चित है निस्सार सब जगत में,
नश्वर यह जग है सारा हर एक के ही मत में।
हर प्राणी है प्रभु का अवतार,
सबको दें खुशियॉं और प्यार ,
तज दें जो है झूठा अहंकार,
कीर्ति होगी जग में आपकी ।
सोच जिम्मेदार हमारी है,
आनंद -संताप की।
हम बनाते मिटाते रहते सपने हजार,
सहायता अड़चन करते अपने हमार।
सोच जिम्मेदार ही सारी है,
इसमें हम आपकी।
सोच जिम्मेदार हमारी है,
आनंद -संताप की।
