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Gopal Agrawal

Abstract

3.2  

Gopal Agrawal

Abstract

एक दिन खुद बदल जाओगे....

एक दिन खुद बदल जाओगे....

3 mins
303


आपकी बात कोई सुनता है,

तो अच्छी बात,

यदि नहीं सुनना चाहता,

तो फिर उससे,

बार बार क्यों बोलते हो,

अपने वजन को तोलते हो,


यदि वो आपकी बातें,

नहीं सुन रहा तो,

ज्यादा सोचने का नहीं,

क्योंकि ज्यादा सोचोगे तो,

खुद ही दुख उठाओगें,


एक दिन मुसीबत में आ जाओंगे,

क्योंकि अब जमाना बदल गया है,

लोग बाते सुनने की जगह,

बातें सुनाने में ज्यादा,

विश्वास करने लगे है,

अब लोगों में दूसरो को,


दुख देने की फैशन चालू हो गई है,

पहले लोग दूसरो के दुखी होते ही,

अपनी तरफ से पहल करते हुए,

बातें करते थे कि,

उसका दुख कुछ कम हो जाए

उसके सुख के लिए,


खुद ही दुख उठाते थे,

मतलब परम्परा को निभाते थे,

अब जमाना जो बदल गया है,

इसलिए ज्यादा सोचने का नहीं,

न ही किसी से ज्यादा बोलने का,


क्योंकि उसे तो,

आपकी बात सुनना ही नही है,

जिसे आप अपनी बात,

सुनाना या बताना चाहते है,

उसने तो कभी अपने बाप की,


बात को ही नहीं सुना है,

उसके पिता ने बेटे की आदत पर,

अपना सिर धुना है,

जब वो ही बेटे को नहीं समझा पाएं,

उसको सुधार नहीं ला पाए,

तो तुम किस खेत की मूली हो,


जो चिल्ला चिल्लाकर,

खुद का और उसका,

भेजा खराब कर रहे हो,

अपने आप को,

तीस मार खां साबित कर रहे हो

वो तो गर्मी को सर्दी मानता है,

और यह जानता भी है,

गर्मी नहीं सर्दी है,


उसकी समझ भी जमाने की गर्दी है,

जो उसके कहने पर नहीं है,

न ही रहेगी,

कारण है वो,

उन लोगों के कहने पर,

चल रहा है जो,

जमाने को उंगलियों पर नचाते है,

आधुनिकता की जाल में,

नित्य नए मुर्गे फंसाते है,


और जिसे आप कर रहे है समझाने का प्रयास,

मत होईए आप उदास,

वो शख्स अभी उस,

मकड़ जाल में उलझा हुआ है,


जिस जाल को,

मकड़ी भी नहीं सुलझा सकती है,

इसलिए,

ज्यादा सोचने का नहीं,

क्योंकि ज्यादा सोचोगे तो,

उसे तो नहीं बदल पाओंगे,

बल्कि जमाने के साथ,

एक दिन खुद बदल जाओगे।


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