Gopal Agrawal

Abstract

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बेईमानी में भी मिलावट...

बेईमानी में भी मिलावट...

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इस मिलावटी युग में

लगता है अब बेईमानी भी मिलावटी हो गई है,

कईयों की मानवता भी इसके साथ सो गई है,

किसी समय आदमी बेईमानी में फेमस होता था,

उसका भी ठगने का एक नजरिया होता था,

जनता उसे पहचानती थी,

उसके बेईमानी के तरीकों को जानती थी,

फिर भी खुद का ठगवाने पहुंच जाती थी,

आज भी कुछ काम ऐसे है जो,

बेईमान ही करवा सकता है,

कारण साफ है, एक ठग ही,

ठग के झांसे में आ सकता है,

कहते है बेईमानी के धंधे में,

ईमानदारी का ही महत्व होता है,

लेकिन अब दिखावटी युग में,

क्या ईमानदारी वाली बेईमानी बची है,

अब तो केवल कमाने की होड़ बची है,

कैसे किसको ठगा जाए,

अपना घर कैसे भरा जाए,

इस सोच पर लोग चलने लगे है,

तभी तो अपने सिद्धांतों को बदलने लगे है,

यही कारण है कि अब बेईमानी भी,

वो बात नहीं बची है,

जिस पर लोग कह सकें,

भले ही उसकी सोच बहुत हल्की है,

लेकिन बात में बहुत वजन होता है,

जैसा वो कहता है वहीं होता है,

अब हर कोई बेईमान होने लगा है,

ईमानदारी का चोला ओढ़ने लगा है,

अब ईमानदारी को कोई जानता नहीं,

वो क्या करता है यह पहचानता नहीं,

ईमानदार और बेईमान की लड़ाई में,

मिलावट ने अपना असर दिखा दिया है,

ईमानदारी को दूर भगाकर,

बेईमानी को मिलावटी बना दिया है



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