STORYMIRROR

ritesh deo

Abstract

4  

ritesh deo

Abstract

तुम्हें चाहूं...

तुम्हें चाहूं...

1 min
225

तुम्हें चाहूं,

या तुम्हें भूला दूं ?


मैं आशिक़ हूं तुम्हारा,

तुम्हारी आशिक़ी के खातिर,

मैं ख़ुद को कौन सी सज़ा दूं ?


दिल में है बहुत कुछ तुमसे बताने को,

कभी मिलोगी हमसे,,

या सारी बातें फोन पर ही बता दूं ?


ये ऑनलाइन की दुनिया बड़ी फिजूल लगती है,

वो जो तीन शब्द मुझे तुमसे कहने हैं,,

मेरी आंखों में देखकर सुनना पसंद करोगी,,,

या मैसेज के ज़रिए ही तुमको पढ़ा दूं ?


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract